हरियाणवी जैसी लट्ठमार भाषा में जो अंतर्प्रेम निहित है शायद कहीं भी नहीं. अपनी इस माँ-बोली में मैंने ग़ज़ल, दोहा और घनाक्षरी छंद का खूब प्रयोग किया है. आज और आज के बाद न केवल कविता बल्कि चौपाली लतीफे भी इस ब्लॉग पर देने का वायदा करता हूँ.
आपका सुझाव और मार्गदर्शन अपेक्षित है.
लीजिये
तू मन्ने रीड कर ले मैं तन्ने रीड कर ल्यूं
तू मन्ने लीड कर ले मैं तन्ने लीड कर ल्यूं.
घर भी महक रहा है बिस्तर चहक रहा है,
तू मन्ने फीड कर ले मैं तन्ने फीड कर ल्यूं.
तेरे बिना हूँ जीरो, तू मिल जै बन जूं हीरो,
तू मन्ने नीड कर ले मैं तन्ने नीड कर ल्यूं.
दुनिया ज़हान तेरा, तेरा मकान मेरा,
तू मन्ने डीड कर ले मैं तन्ने डीड कर ल्यूं.
--योगेन्द्र मौदगिल
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